डा. गुरदीप कौर, राज कुमार
डॉ. अंबेडकर के विचारों की अभिव्यक्ति, चाहे वह सामाजिक हो या राजनीतिक, दलित चेतना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारतीय इतिहास में आधुनिक काल क्रांतिकारी युग है, जिसमें दलित साहित्य ने ब्राह्मणवाद, सामंतवाद और जाति-व्यवस्था को चुनौती दी है। पारंपरिक जाति-व्यवस्था के विघटन के समय साहित्यकारों का दायित्व है कि वे समाज की कुरीतियों को उजागर करें और एक नई दिशा प्रदान करें। डॉ. अंबेडकर के विचारों से प्रेरित दलित साहित्य का उद्भव 1975 के बाद हुआ, जिसने हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। इसमें दलितों के जीवन, उनकी पीड़ा, और सामाजिक-राजनीतिक न्याय की आवश्यकता की अभिव्यक्ति की गई है। डॉ. अंबेडकर ने दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, और उनकी शिक्षाएँ दलित साहित्य के लिए आधारभूत सिद्धांत बनीं। इस संदर्भ में, यह कहा जा सकता है कि आज का दलित साहित्य अंबेडकरवादी साहित्य है, जो समानता, बंधुता, और न्याय का संदेश देता है।
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