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International Journal of Humanities and Arts
Peer Reviewed Journal

Vol. 2, Issue 1, Part A (2020)

रहीम और उनके काव्य की आधार-भूमि

Author(s):

डाॅ॰ जसवीर त्यागी

Abstract:

मुगलकालीन दरबारी कवि अब्र्दुरहीम ख़ानखाना ऐसे कवि हैं; जिनके काव्य की आधार भूमि बड़ी व्यापक है, और जिनकी काव्य-संवेदना जन-मन स्पर्शिनी है। रहीम का ऐतिहासिक योगदान यह है कि इन्होंने मज़हब से ऊपर उठकर उदात भाव भूमि पर काव्य रचना की, और दरबारी परिवेश में पले-बढ़े होकर भी साधारण जन और लोक जीवन से सदा जुड़े रहे। रहीम स्वभाव के दयालु, दानी और गुण ग्राहक थे। वे एक साथ क़लम और तलवार के धनी होकर मानवता के पुजारी थे। तुलसी के वचनों के समान रहीम के वचन भी हिंदी भाषी-भू-भाग में पढ़े-लिखे लोगों से लेकर अनपढ़ लोगों के मुँह पर रहते हैं। भारतीय संस्कृति, साहित्य और सामाजिक मर्यादा के कवि रहीम ने नीति, भक्ति और शृंगारपरक काव्य की रचना की है। लोकप्रियता की दृष्टि से रहीम की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। रहीम के दोहे मनुष्य को मानवता का पाठ पढ़ाते हैं। प्रस्तुत शोध आलेख में रहीम और उनके काव्य की आधारभूमि पर विचार किया गया है।

Pages: 36-42  |  1369 Views  923 Downloads


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How to cite this article:
डाॅ॰ जसवीर त्यागी. रहीम और उनके काव्य की आधार-भूमि. Int. J. Humanit. Arts 2020;2(1):36-42. DOI: 10.33545/26647699.2020.v2.i1a.46
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