डाॅ. रामफूल जाट
योग अति प्राचीन समय से ही भारतीय मनीषियों के अन्तःकरण में विमल मदांकिनी की अविच्छिन्न धारा की तरह प्रवाहित होती आ रही है। योग हमारे पूर्वज व ऋषियों का साधनालब्ध ऐसा आन्तर विज्ञान है जिसकी उपज हमारे समस्त दर्शनशास्त्र कहे जा सकते है। दर्शनशास्त्र के साथ ही ऋषि, स्मृति, उपनिषद, पुराण, धर्मशास्त्र तथा ज्योतिष आदि सभी विधाए इसी योग शास्त्र के द्वारा प्राप्त हुई है। इस योग की एक कल्पतरू वृक्ष से तुलना की गयी है। योग की अलौकिकता, साक्षावृत चमत्कारिक सफलता की हमारे समस्त आर्य वाग्मय में प्रसंसा की गयी है। इस योग साधना द्वारा आध्यात्मिक सत्ता का यथार्थ रूप अनुभव तथा साक्षात्कार होता है। प्रत्येक धर्म एवं समप्रदाय के साधकों ने योग की प्रशंसा की है तथा इसके अनुसरण की प्रेरणा दी है। प्रस्तुत शोध पत्र ने योग की अवधारणा, विश्लेषण, स्वास्थ्य व निरोगी काया हेतु आवश्यकता एवं ग्रामीण भारत योग के प्रसार की चुनौतियों अध्ययन किया गया है।
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