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International Journal of Humanities and Arts

Vol. 5, Issue 1, Part A (2023)

राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में सामाजिक समस्याएं एवं कथा भाषा

Author(s):

डाॅ. गीता पाण्डेय एवं रीता यादव

Abstract:

राजेन्द्र यादव हिन्दी साहित्य के एक अप्रतिम कलाकार थे। राजेन्द्र जी ने बहुत ही सूक्ष्म एवं गहन दृष्टि से समाज की विसंगतियों का विवेचन एवं विश्लेषण अपने उपन्यासों में किया है। उनका समग्र उपन्यास साहित्य एक प्रकार से उनके जीवनानुभव का ही यथार्थ अंकन है। राजेन्द्र जी ने समय के साथ-साथ बदलते हुए जीवन मूल्यों को जाना, पहचाना तथा उसे अपने उपन्यासों में स्थान दिया। यही सामाजिक परिवर्तन और बदलाव, समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याएँ एवं विसंगतियां ही उनके उपन्यास सृजन की आधारभूमि बनीं। इसलिए इनके उपन्यास ज्यादातर समस्यामूलक है। समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की समस्यायें और विसंगतियां ही राजेन्द्र जी के उपन्यासों की विषयवस्तु हैं। राजेन्द्र जी का पहला उपन्यास ‘प्रेत बोलते हैं‘ (1951) था, जो बाद में ‘सारा आकाश‘ नाम से 1959 ई. में प्रकाशित हुआ. इस उपन्यास का केंदीय विषय भारतीय मध्यवर्ग ही है। इसमें एक संयुक्त परिवार की खौफनाक एवं भयावह स्थिति का यथार्थ चित्रण किया गया है। इस उपन्यास का नायक ‘समर‘ एक मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता है। 
‘समर‘ मध्यवर्गीय जीवन के संस्कारों में जकड़ा एक बेबस और लाचार पात्र है। लेकिन उसकी यह बेबसी और लाचारी सिर्फ उसकी ही नहीं बल्कि समूचे भारतीय निम्न मध्यवर्ग की है। ‘समर‘ का दोस्त ‘शिरीष‘ उससे कहता है कि तुम अपने पुराने सड़े-गले संस्कारों से मुक्त होकर नवीन एवं आधुनिक जीवन मूल्यों को आत्मसात करो। यही नहीं वह यह भी कहता है कि यदि व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास करना है तो संयुक्त परिवार की प्रथा को तोड़ना ही होगा।

Pages: 53-57  |  94 Views  19 Downloads


International Journal of Humanities and Arts
How to cite this article:
डाॅ. गीता पाण्डेय एवं रीता यादव. राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में सामाजिक समस्याएं एवं कथा भाषा. Int. J. Humanit. Arts 2023;5(1):53-57. DOI: 10.33545/26647699.2023.v5.i1a.80
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