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International Journal of Humanities and Arts

Vol. 6, Issue 1, Part B (2024)

जैनेन्द्र के उपन्यासों में अंतद्र्वन्द्व की अभिव्यक्ति

Author(s):

अरविन्द कुमार सिंह, धर्मेन्द्र निषाद

Abstract:
जैनेन्द्र कुमार ने हिन्दी उपन्यास को एक नयी दिशा, एक नयी औपन्यासिक दृष्टि, नया कथ्य और मुहावरा दिया है। उस समय जब प्रेमचन्द के सामाजिक उपन्यासों का बोलबाला था, जैनेन्द्र ने अपने उपन्यासों में व्यक्ति को केन्द्रीय विषय बनाया। व्यक्ति को उसकी सामान्यता के रूप में नहीं, बल्कि विशिष्टता के तौर पर ग्रहण किया, उनकी पहचान और पड़ताल का प्रयत्न किया है। जैनेन्द्र ने उपन्यास को वस्तु और शिल्प की नयी भूमि पर खड़ा करने का प्रयास किया। उसमें वैयक्तिक सत्यों के मनोवैज्ञानिक उद्घाटन और विश्लेषण की क्षमता और योग्यता पैदा की थी और उसे कथात्मक ढरो और रूढ़ियों से मुक्ति दिलाई। ‘परख‘ से ‘अनाम स्वामी‘ तक के उपन्यास उनकी औपन्यासिक प्रतिभा के प्रमाण हैं।

Pages: 111-113  |  82 Views  33 Downloads


International Journal of Humanities and Arts
How to cite this article:
अरविन्द कुमार सिंह, धर्मेन्द्र निषाद. जैनेन्द्र के उपन्यासों में अंतद्र्वन्द्व की अभिव्यक्ति. Int. J. Humanit. Arts 2024;6(1):111-113. DOI: 10.33545/26647699.2024.v6.i1b.107
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