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International Journal of Humanities and Arts
Peer Reviewed Journal

Vol. 6, Issue 1, Part B (2024)

सूरदास की कविता में प्रकृति और गोचारण का सौन्दर्य

Author(s):

रवि कुमार यादव

Abstract:

सूर की कविता का सबल पक्ष लोक और उसकी विविध छवियाँ है। ब्रज के लोक-जीवन की मुक्त और विस्तृत भूमि पर कृष्ण के चरित्र द्वारा सूर-काव्य का वितान विकसित हुआ। सूर की कविता महज हरि-कीर्तन नहीं, उनमें भावनाओं का अपार सागर है। वह प्रेम में आकण्ठ डूबे जीवन जीने की कला है। सूरदास ने पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों को समसामयिक अनुभव के साथ जोड़कर समाज को भाव के साथ जीवन जीने की कला सिखाई। सूर ने कृष्ण-काव्य की परम्परा को आत्मसात कर कृष्ण की लोक-छवि प्रस्तुत की। सहज मानवीय और सामाजिक भूमि पर सूर-काव्य में विकसित कृष्ण का चरित्र विशिष्ट है। ब्रज के लोक-पर्व, लोक-मान्यताएँ और लोक-संस्कार का सृजनात्मक चित्रण सूर-काव्य का वैशिष्ट्य है। ब्रज की चारागाही और पशुपालन की संस्कृति में छिपे लोक-जीवन के विविध पहलुओं को सूर ने अपनी सृजनात्मकता से समृद्ध किया है। लोक-जीवन की अभिव्यक्ति के लिए सूर ने ब्रज-भाषा की लोक-छवियों का वर्णन किया है। मुहावरे, लोकोक्तियाँ और लोक-जीवन में प्रयुक्त शब्दावली का प्रयोग सूर-काव्य की उपलब्धि है।

Pages: 99-101  |  605 Views  318 Downloads


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How to cite this article:
रवि कुमार यादव. सूरदास की कविता में प्रकृति और गोचारण का सौन्दर्य. Int. J. Humanit. Arts 2024;6(1):99-101. DOI: 10.33545/26647699.2024.v6.i1b.75
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