भरत सिंह मीना
त्याग, तपस्या और बलिदान की गाथाओं को अपने में समेटे शौर्य और साहस की धरती राजस्थान आरंभ से ही पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही है। कहीं दूर तक पसरा रेत का समन्दर तो कहीं शीतलता का एहसास कराती झीले। कहीं ऊंची-नीची अरावली की पर्वत श्रृंखलाएँ तो कहीं पठार और मैदान। कितनी अनूठी राजस्थान की भूमी जो राजाओं के द्वारा निर्मित मंदिर एवं किलें, देशी व विदेशी पर्यआकों को अपनी ओर खिचती हैं। यही कारण है कि राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में बसा भरतपुर संभाग के पर्यअन स्थल जैसे राजाओं के द्वारा निर्मित अनेकों किले, बावड़ी, मंदिर, तालाब, अभ्यारण एवं तीज-त्यौहार, मेले और उत्सव, संस्कृति, घूमर, नृत्य, आकर्षण केन्द्र हैं। कहीं हवाई नृत्य के रोमांचक करतब है तो कहीं विद्युत गति-सा तेरहताली नृत्य मन को मोह लेता है अलगोजा की मधुर ताल के साथ मोरचंग, भपंग और कामायचा जैसे लोकवाद्यों की झंकार मन के तारों को झंकृत-सी कर देती है। पग-पग पर संस्कृति की अनूठी परम्पराओं की भूमि राजस्थान की हस्तकला, यहाँ की वेशभूषा सभी कुछ ऐसी विशेषताऐं लिए हुए है कि यहाँ आने वाला पर्यटक बस यहीं का होकर रह जाता है। राजस्थान के बारे में सुप्रसिद्ध कवि कन्हैयालाल सैठिया ने ठीक ही कहा है- “आ तो सुरगा नै सरमावै, इण पर देव रमणनै आवैं, धरती धोरां री।“
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