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International Journal of Humanities and Arts
Peer Reviewed Journal

Vol. 7, Issue 1, Part B (2025)

महाकुम्भ: सांस्कृतिक पुनर्जागरण एवं धार्मिक पहचान का संगम

Author(s):

धीरज प्रताप मित्र

Abstract:

महाकुंभ 2025 न केवल एक धार्मिक आयोजन है अपितु यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक परिघटना भी है जो भारत में धार्मिक पहचान के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उत्तर प्रदेश राज्य के प्रयागराज में आयोजित इस भव्य आयोजन में लाखों श्रद्धालु विभिन्न पृष्ठभूमियों से भाग लेते हैं, जिससे सामूहिक धार्मिक चेतना को बल मिलता है। गंगा, यमुना तथा पौराणिक वर्तमान में अदृश्य सरस्वती नदी के संगम में स्नान करने की परंपरा मोक्ष प्राप्ति के साथ ही आध्यात्मिक शुद्धिकरण में गहरी आस्था को दर्शाती है। शैव, वैष्णव, दशनामी संन्यासी, उदासीन के साथ ही नाथ संप्रदाय एवं इस बार बौद्ध समेत विभिन्न धार्मिक समूह इस आयोजन के माध्यम से धार्मिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने में योगदान देते हैं। जहाँ नागा संन्यासी अपनी कठोर तपस्या के लिए प्रसिद्ध हैं, वहीँ वैष्णव संप्रदाय प्रेम एवं भक्ति को प्रमुखता देते हैं। यथावसर होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों से परे, महाकुंभ धार्मिक समावेशन एवं सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देता है। 2025 के आयोजन में आधुनिक तकनीकों, यथा लाइव स्ट्रीमिंग, डिजिटल संचार आदि का उपयोग किया गया जिससे यह आयोजन वैश्विक स्तर पर अधिक लोगों तक पहुँचा। सरकार द्वारा महिला संन्यासियों की भागीदारी को बढ़ावा देने की पहल धार्मिक पहचान के बदलते स्वरूप को दर्शाती है। महाकुंभ विभिन्न संप्रदायों के बीच संवाद को प्रोत्साहित कर संविधान सम्मत धार्मिक सहिष्णुता एवं बहुलतावाद को सशक्त करता है। प्रस्तुत शोध आलेख महाकुंभ 2025 के समाजशास्त्रीय पहलुओं का विश्लेषण करता है जिसमें तीर्थयात्रा की भूमिका, परंपरा एवं आधुनिकता का संगम तथा सामूहिक धार्मिक अनुभवों का समाज पर प्रभाव शामिल है। निष्कर्षतः, महाकुंभ एक शक्तिशाली माध्यम है जो धार्मिक पहचान को बनाए रखने तथा पुनर्परिभाषित करने में सहायक सिद्ध होता है।

Pages: 91-95  |  50 Views  24 Downloads


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How to cite this article:
धीरज प्रताप मित्र. महाकुम्भ: सांस्कृतिक पुनर्जागरण एवं धार्मिक पहचान का संगम. Int. J. Humanit. Arts 2025;7(1):91-95. DOI: 10.33545/26647699.2025.v7.i1b.124
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