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International Journal of Humanities and Arts
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Vol. 7, Issue 1, Part C (2025)

कुषाण कालीन कला-एक अविस्मरणीय शैली

Author(s):

प्रभात वर्मा, डॉ. रश्मि शर्मा

Abstract:

भारत में कई स्थान हैं जहां मूर्तिकला का कार्य बहुत ही उन्नत किस्म का हुआ है। भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में कुषाण काल की मूर्तियों का एक विशेष स्थान है। कुषाण शासकों द्वारा मथुरा नगर में किया मूर्ति कला का कार्य अपने कार्य तकनीकी व प्रयुक्त सामग्री के लिए भी विशिष्ट है। मथुरा में मूर्तियों के लिए भरतपुर व सीकर की खदानों से निकलने वाले लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग हुआ है। वहीं गांधार में स्लेटी पत्थर का प्रयोग किया गया । कुषाण काल में सबसे अधिक मथुरा और गांधार शैली का विकास हुआ। इस काल में बुद्ध की प्रतिमाओं में नए नए प्रयोग भी हुए हैं। जिसमें अभय मुद्रा, ध्यान मुद्रा,धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा व भूमिस्पर्श मुद्रा। इन मुद्राओं का अपना एक विशेष प्रयोजन था कि किस मुद्रा का क्या अर्थ है और प्रतिमाओं के पार्श्व में प्रभा मंडल का भी प्रयोग हुआ । कुषाण काल में ही भगवान बुद्ध के वस्त्रों में भी नए प्रयोग हुए जिसमें मथुरा क्षेत्र में पतली धोती व गांधार क्षेत्र में लंबे वस्त्र (चोगा) शामिल है। बुद्ध की वास्तविक मानव कद की मूर्ति का निर्माण कुषाण काल में ही पहली बार हुआ था । कुषाणों ने बौद्ध, जैन व हिन्दू प्रतिमाओं का उत्कृष्ठ कार्य करवाया । बिना सर वाली कनिष्क की मूर्ति भी कुषाण राजा की है। कुषाण काल से पहले भगवान बुद्ध को प्रतीकों (धर्मचक्र, पदचिन्ह, वृक्ष)में दर्शाया जाता था ।

Pages: 176-179  |  625 Views  136 Downloads


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How to cite this article:
प्रभात वर्मा, डॉ. रश्मि शर्मा. कुषाण कालीन कला-एक अविस्मरणीय शैली. Int. J. Humanit. Arts 2025;7(1):176-179. DOI: 10.33545/26647699.2025.v7.i1c.136
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