अनुपम कुमारी
ग्रामीण क्षेत्र में लघु और सीमान्त किसानों तथा कृषि श्रमिकों के शहरों की ओर बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन को कम करते हुए ग्रामीण भारत की कृषि पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना नितांत आवश्यक है इस लिए ग्रामीण कृषितर क्षेत्र का विकास महत्वपूर्ण हो जाता है जिससे वैकल्पिक आजीविका उपलब्ध कराकर इसे रोका जाय अन्यथा कृषि कार्य के लिए मजदूरों की कमी बढ़ती जाएगी। गत तीन दशकों में नाबार्ड ने ग्रामीण कृषितर क्षेत्र के विकास के लिए अनेक पुनर्वित्त तथा संवर्धनात्मक योजनाएँ तैयार की हैं और फील्ड स्तर की आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें विस्तार देने तथा उनमें परिमार्जन लाने के लिए निरंतर प्रयास किया है. ऋण प्रवाह बढ़ाने, जहाँ ऋण सुविधा नहीं पहुँची है, वहाँ ऋण उपलब्ध कराने, और ग्रामीण क्षेत्रों के विकेंद्रीकृत सेक्टर में लघु, कुटीर और ग्रामोद्योगों, हथकरघा, हस्तशिल्प और अन्य ग्रामीण शिल्पों तथा सेवा क्षेत्र में लिंकेज की व्यवस्था करने पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया गया है। ग्रामीण कृषीतर क्षेत्र के लिए बाजार विकसित करने के साथ-साथ ग्रामीण युवाओं और महिलाओं में उद्यमिता की संस्कृति और अपेक्षित कौशल विकसित करना नाबार्ड के लिए एक प्राथमिकता क्षेत्र रहा है. कृषि और कृषीतर क्षेत्रों में नवोन्मेष को बढ़ावा देने में भी नाबार्ड की सक्रिय भागीदारी रही है।
असंगठित क्षेत्र में श्रम शक्ति की बागडोर महिलाओं ने ही संभाल रखी है। देश की आर्थिक गतिविधियों के संचालन में असंगठित क्षेत्र की अपनी भूमिका है और इसमें कोई दोराय नहीं कि असंगठित क्षेत्र में श्रम शक्ति को भले ही मेहनत का पूरा पैसा नहीं मिलता हो पर असंगठित क्षेत्र में सर्वाधिक रोजगार के अवसर हैं। बहुत बड़े वर्ग की रोजी-रोटी असंगठित क्षेत्र पर ही टिकी हुई है। हालांकि असंगठित क्षेत्र की अपनी समस्याएं हैं। इसमें रोजगार की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, नियमित आय का ना होना, स्वास्थ्य सुरक्षा सहित बहुत सी समस्याओं से दोचार होना पड़ता है। आज देश में असंगठित क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की हिस्सेदारी अधिक हो गई है। केन्द्र सरकार के ई-श्रम पोर्टल पर देश में 29 करोड़ 56 लाख श्रमिकों का पंजीकरण हो चुका है जिसमें से महिला श्रमिकों की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक है। असंगठित क्षेत्र में आज महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी आधी से भी ज्यादा हो चुकी है। केन्द्र सरकार के ई-श्रम पोर्टल की ही बात करें तो इसमें पंजीकृत 29 करोड़ 56 लाख श्रमिकों में से 53 फीसदी से भी अधिक महिला श्रमिक रजिस्टर्ड हैं जबकि पुरुष श्रमिकों की संख्या यही कोई 46 फीसदी से कुछ ही अधिक है। बात भले ही कुछ भी की जाती हो पर तस्वीर तो यही है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक श्रम कर रही हैं। भले ही व्हाइट कालर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में कम हो पर आज संगठित व असंगठित क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं है।
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