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International Journal of Humanities and Arts
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Vol. 7, Issue 1, Part E (2025)

हिन्दी उपन्यास ‘सुरंग में सुबह’ में दर्शाये राजनैतिक चिन्ता का विश्लेषण

Author(s):

अभिजीत कुमार सिंह

Abstract:

उपन्यास का शीर्षक ‘सुरंग में सुबह’ मिथिलेश्वर ने बहुत सोच-विचार कर रखा है। वस्तुतः लोकतन्त्र के संकट में जूझते जनार्दन और उसके सहयोगियों के कर्मठ प्रयासों पर यह एक अखबारनवीस की टिप्पणी है, जो उपन्यास का शीर्षक बन गई है। कहने की जरूरत नहीं कि शीर्षक व्यंजनागर्भी शीर्षक है समूचे उपन्यास के संवेदनात्मक उद्देश्य को खोल देने वाला। सुरंग और सुबह दोनों प्रतीक हैं। एक लोकतन्त्र पर छाए संकट और अँधियारे का, दूसरा उस संकट से टकराने, अन्धकार के खिलाफ प्रकाश के अपने संगठित अभियान का। लोकतन्त्र का यह विद्रूप जो आज हमारी आँखों के सामने है, वह सुरंग है जिसके भीतर से देश गुजर रहा है और सुबह वे कर्मठ प्रयास हैं जिनकी अगुवाई जनार्दन और उसके साथी कर रहे हैं। रचनाकार का बल सुरंग पर नहीं, उसके भीतर फूटने वाली सुबह पर है जिसे अपने प्रकाश को बिखेरने के लिए अनन्त आकाश भले न मिले हों, परन्तु वह फूट चुकी है। अँधियारा घटाटोप है, सख्त है और उसे बेधने वाली प्रकाश की किरणें अभी उतनी सशक्त नहीं हैं। परन्तु सुबह का होना ही, भले वह सुरंग के भीतर का हो, अपनी अहमियत रखता है। कुछ लोग हैं, जिनमें ईमानदारी, निष्ठा और संकल्प हैं, कुछ ताकतें हैं जो अँधियारे के खिलाफ खड़ी हैं। बहुत कठिन प्रयासों की जरूरत है अँधियारे को भेदने के लिए, बड़े धीरज की जरूरत है, किन्तु प्रतिज्ञा हो चुकी है।

Pages: 358-361  |  504 Views  128 Downloads


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How to cite this article:
अभिजीत कुमार सिंह. हिन्दी उपन्यास ‘सुरंग में सुबह’ में दर्शाये राजनैतिक चिन्ता का विश्लेषण. Int. J. Humanit. Arts 2025;7(1):358-361. DOI: 10.33545/26647699.2025.v7.i1e.168
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