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International Journal of Humanities and Arts
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Vol. 6, Issue 1, Part A (2024)

हिन्दी साहित्य का स्वर्णकाल - भक्तिकाल

Author(s):

Vaishali Sharma Mishra and Dr. Sudha Dixit

Abstract:

भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण काल है। इसकी विशेषताओं के कारण इसे स्वर्णकाल कहा जाता है। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, दार्शनिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि के अंतविरोधों से परिपूर्ण होते हुए भी इस काल में भक्ति की एसी धारा प्रवाहित हुई कि विद्वानों ने एकमत से इसे हिन्दी साहित्य का स्वर्णकाल कहा। इसकाल में भक्ति परक रचनाओं की प्रधानता रही। यह वह काल है जो वैचारिक समृ़द्धता और कला वैभव के लिए विख्यात रहा है। इस काल में हिन्दी काव्य में किसी एक दृष्टि से नही अपितु अनेंक दृष्टियों से उत्कृष्टता पायी जाती है। यह काल कवि रूपी रत्नों से भरा हुआ था जिन रत्नों की चमक अभी बरकरार हैं। अतः इस काल को स्वर्ण काल कहना उचित ही है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में आदिकाल के बाद आये इस युग को पूर्व मध्यकाल भी कहा जाता है। यह हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है जिसको जार्ज गियर्सन ने स्वर्णकाल श्यामसुंदर दास ने स्वर्णयुग आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भक्तिकाल एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक जागरण कहा। इस काल का उद्वभव वि.स. 1375 से 1700 तक का माना गया है। इस काल में दो धारांए प्रवाहित हुई निर्गुण धारांए सगुण धारांए निर्गुण धारा के प्रवर्तकों ने निराकार भगवान की उपासना पर बल दिया और इसी के विपरीत सगुण धारा के प्रवर्तकों ने साकार ईश्वर की उपासना की।

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How to cite this article:
Vaishali Sharma Mishra and Dr. Sudha Dixit. हिन्दी साहित्य का स्वर्णकाल - भक्तिकाल. Int. J. Humanit. Arts 2024;6(1):29-31. DOI: 10.33545/26647699.2024.v6.i1a.59
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